Tuesday, November 9, 2010

ऐ शाम ना हों उदास यु
तुझे देख के दिल भर आता है
तनहा इन तन्हाईओं में
रोने को जी चाहता है 

जी चाहता है इतना रोये, इतना की चाहत थम जाए
फिर ना कोई ख्वाब  आये, नींद में ऑंखें रम जाये
बह जाए शिकवो की माटी, अरमानो का पता ना हों
इतनी सख्ती हों दिल पर, फिरसे कोई ख़ता ना हों 

साँसे आसान हों जाएगी
अब मनसे जो ये बोझ ढले
ए शाम ज़रा हसतें रहना
रुसवा हम बेशक हों भले 

No comments:

Post a Comment