Thursday, December 23, 2010

चाँद से होके नाराज़, एक तारा टूट गिरा
और मैंने सोचा आज,
कोई ख्वाइश पूरी होगी....
आँखें बंद किये, मांग लिया कुछ ऐसा
देखे कैसे खुदा की,
आज़माइश पूरी होगी.....


तारा हों गया ग़ुम, देके एक चिंगारी
काली रात को
और उलझे ख्वाब को.....
बाकी रहा आसमाँ,उमीदों से भरा
कैसे सुकूँ आये
किसी जस्बात को......
 
होगी फिर सुबह, और फिर रात होगी
चाँद भी आएगा
और शायद तारे भी
पर वो एक तारा, जो टूटा मेरे लिए
क्या सच कर पायेगा
खाब वो प्यारे भी ......


हर रात ये देखूंगी में, तारो से सजी महफ़िल
और याद करुँगी उसको
जो था मेरा अपना....
शायद फिर कोई तारा, टूट के मुझसे कहदे
आया हु में करने
मुमकिन वो मुश्किल सपना......

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