Tuesday, November 9, 2010

माना बे- अक्ल हु में
तेरी सुध -बुध कहाँ गई
मेरा कहा सब सुन लिया
क्यों खुद कुछ कहा नहीं


क्या ऐसे मोहब्बत होती है
किसी की मन मर्जी चले
एक मचादे हुल्लड़ दंगा
दूजा बस सुनता ही रहे


बस मेरी बात चलेगी क्या ?
क्या युही तेरा बसर होगा ?
अरे बुद्धू  क्या चीज़ है तू ?
कैसे तेरा गुज़र होगा ?


ऐसे ही तुने किया अगर
कही दूर चली जाउंगी में
ढूंढते रेहना सारी दुनिया
लौटकर ना आउंगी में


क्यों मुझसे ही प्यार किया
मुझसे बेहतर भी लोग थे?
भुगतना सारी उम्र मुझे अब,
शायद यही संजोग थे !

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