Tuesday, October 19, 2010

प्रेम की पगडण्डी पर चलके, कच्ची  राहें नापी थी
माटी की खुसबू में खोकर, निकल पड़े ये किस वन में
उम्र भर की तपस में भी जो, मिला नहीं है कितनो को 
पा लिया वो अक्षत मोती, हमने अपने यौवन में


पत्तो की सर सर को सुनके, सबर के तिनके जोड़े थे
मौन जड़ो ने सिखा दिया, अचल है रहना कण कण में 
मांगे वो जो, जिसके दिल में, पाने की कोई इच्छा हों 
क्या मांगे हम, तुझको पाके, पा लिया सब जीवन में

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