Wednesday, September 1, 2010

लम्हों की सिलवटो को हाथों से ना सुलझाओ
रेशम सी नजाकत है, कुछ और ना उलझ जाए
       कतरा भी कुरेदोगे, कहानी गिर पड़ेगी
बेकार ही ये दुनिया कुछ और ना समझ जाए


होले से थामो इसको, ज़र्रा भी मचलता है
हलकी जो ली करवट , सब ना मुकर  जाए
         तार तार में बहती साँसों की सिहाई है
टूटे जो ये लम्हे, खुसबू ना बिखर जाए

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