Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Saturday, October 2, 2010
पल पल की गीनती करतें हैं तब जाके ये दिन ढलतें हैं कोई आकर हमसे भी कहे तेरी याद में शब् भर जलतें हैं
No comments:
Post a Comment