Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Wednesday, October 6, 2010
तेरी आँखों से राहें तकतें हैं इंतज़ार खुदका करतें हैं सज़ा तेरे नाम पर देतें है हर्जाना खुद ही भरतें हैं
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