Wednesday, November 24, 2010

शाम हुई, अब चलते हैं
             क्या ख़ाली हाथ भेजोगे?
कुछ किस्से, कुछ हिस्से,
             तुम अपने भी देदो.

अपना तो एक ख्वाब भी,
             हम पूरा ना कर पाए..
तुम्हारे नाम से पुरे हों शायद,
             कुछ सपने भी देदो.

1 comment:

  1. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.

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