Tuesday, November 16, 2010

कल ख्वाब में मैंने खुद को, मरते हुए देखा
मौत से अपनी ऐसे लड़ते हुए देखा.

फूलो से सजी महफ़िल, मौसम बहार का ,
इक पेड़ से हरएक पत्ता,खरते हुए देखा,
कल ख्वाब में मैंने खुदको, मरते हुए देखा.

तपते निर्जल रन में, एक बूँद नहीं देखि ,
आँखों से आंसुओ को, झरते हुए देखा,
कल ख्वाब में मैंने खुदको, मरते हुए देखा.

शायद ही डूबती वो, सुराग वाली नय्या,
अपनों को उसमे मिटटी, भरते हुए देखा
कल ख्वाब में मैंने खुदको मरते हुए देखा


अंधेर काली रातें, दियो से कट ही जातीं 
तुझको लौ पर हाथ, धरते हुए देखा
कल ख्वाब में  मैंने खुदको मरते हुए देखा


बस ये ना  होता तो में, जी लेती शायद
किसी और से प्यार तुझको, करते हुए देखा'
कल ख्वाब में मैंने खुदको, मरते हुए देखा

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