Tuesday, August 24, 2010

ख्वाबो के परिंदे जो तिलमिला रहे है
आँखों में घुलते समंदर की जागीर है
लो उठा कर हमने भी देख लिए खंजर अब
लुफ्त क्या जब होसलों की ठंडी ही तासीर है

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