Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Tuesday, November 2, 2010
टूटे एक ख्वाब के बिखरें है तिनके पलकों के रेशों में उलझे हुए या तो चुभेंगे ये आँखों में जाकर बह जायेंगे या फिर आंसू बहाकर
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