Thursday, September 30, 2010

शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजाते है....
आओ तुम्हे हम बीती बातें याद दिलातें हैं....

आँखों के तरकश से कैसे तीर चलाये थे
होठों की चुप्पी से कैसे गीत सजाये थे
धड़कन की तेज़ी से कैसे पास आये थे
खयालो में इन सबको आओ फिर दोहरातें है....
देखें अबके मिलके  दोनों कहाँ तक जातें हैं....

लम्हों की गुथ्ही से गुज़रे किस्से चुरातें हैं....
बंद मुठी से यादों की कुछ रेत गीरातें है ....

हाथों की नरमी ने जीद को मोम बना दिया
ख्वाबो की गर्मी ने मौसम और सजा दिया
साँसों ने साँसों को सारा हाल बता दिया
इस खेल की कोई बाज़ी आओ फिर लगातें है....
देखें इस बारी हम कितना  जीत के जातें हैं .... 

होसले के दम को थोडा और बढ़ातें हैं...
बातों को बातों से आगे लेकर जाते हैं....
जो ना किया था मिलकर दोनों  कर ही जातें हैं....
धुल में घुलकर संग हवा के उड़ ही जातें हैं...
आओ तुम्हे हम बीतें बातें याद दिलातें हैं
थोडा सा हसतें  है थोडा नीर बहातें है....
शाम की इस ग़ज़ल को थोडा और सजातें है ....

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