Tuesday, August 31, 2010

किसने कितना बुरा किया
  ये  हिसाब कभी और करेंगे
आज तोह इन लबो से बस अच्छा ही  कुछ कहना
   कुछ मीठे लम्हों की बातें,
कुछ खट्टी सी सौगातें
किसी और की नहीं आज बस अपनी ही बातें कहना


चलो इस हरी घास पर हाथ थामे चलते हैं
पानी भी  बरस रहा है, थोडा और  फिसलते है  
बूंदे की छुँवन से कुछ नम्रता सी लेले
बरसती लड़ी से सरलता ही सिखले
 
             आँखों को मूंद कर आसमान को देखो
चेहरे और मन को बस धुल जाने दो
उतर जाने दो यह सारे झूठे नकाब
आओ चलो आज हम फिर से बच्चे बन जाये


            छब छब करके कीचड़  उछाले
चलो एक दुसरे को मिटटी में डूबाले
यह कीचड़ उससे बेहतर है जो हम एक दुसरे पर उछालते है
इस कीचड़ की महक से हमारे अहंकार कुछ कम हों जायेंगे
हम फिर हमारे मूल अस्तित्व -इस धरती में खो जायेंगे
कुदरत के इस बहाव में आओ हम बह जाए
                
                 चलो ना संग मेरे , कदमो को ना रोको
ऐसी बारिश कभी कभी ही होती है
बरसने को तोह पानी खूब बरसेगा कल भी
मगर ऐसी बारिश फिर ना होगी
की जब हम मिलके कुछ नया पा सके
की जब हम पुराने ग़म  भुला सके
की जब हम माफ़ी का मतलब  सिख सके
की जब हम जीने का सबब देख सके


                  आओ चलो हम चलते चले
भीगते चले, खेलते चले,
खो जाए ऐसे जैसे यह बूंदे बरसके खो जाती है
भिन्न होकर भी गिरने पर एक हों जाती है
चलो हम भी गिरे उन बन्धनों की छतो से
आओ हम भी माटी में मिलकर माटी हों जाए
आओ हम सब भूलकर बस एक हों जाए

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