Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Saturday, September 25, 2010
खयालो के देश में दंगा मच गया ख्वाबो के शहर में तबाही हों गयी ग़ालिब ने अपने ग़म को शब्दों में क्या रखा ग़ज़ल की दुनिया में वाह-वाही हों गयी
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