Monday, July 8, 2013

पहोंच से अपनी दूर है

हाथों से क्या पलटे जायें 
वक़्त ने जो फेकें पाशे 
कदमो से ही नाप ले आ 
वो मंजिल कितनी दूर है 

 किन आँखों में ख़ाब नहीं 
किसका दिल ख़ाली घड़ा 
कुछ दम भरके निकल गए 
जो बिखर गए, मजबूर है 

ख्वाहिशों की होड क्या 
बे-लगाम वो घोड़े है 
थमते तब, जब सांस रुके 
बेइन्ताहि सा फ़तुर है 

चिलम से बढ़कर चराग़ भी 
हल्ला मचा है सिने में 
ख्याल भी ऐसे आग लगा दे 
तपीश कुछ उसमे ज़रूर हैं 

नज़र ने लेकर दिल में रखा 
दिल का हाल बेहाल है
इसमें उसकी क्या खता 
नजरो का ही कसूर है 

बेपरवाही कडवी इतनी 
मिसरी भी मुहं में ज़ेहर लगे 
लबों से उसके पीतें है हम 
उसके रस में चूर है 

युही नहीं तारीफें होती 
कहतें हमें हसीन लोग 
छा जाता इन आँखों में  जो 
उसके स्पर्श का नूर है 

गद गद ख्वाइश हो उठती है 
सीने से उसके लग जाए 
खो भी देते खुदको उसमे 
पहोंच से अपनी दूर है 
 

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