Sunday, January 20, 2013

कमर का करहाना 
कंधो का झुक जाना 
आँखों के काले घेरे 
और ख्याल मेरे।
कहना है ये सबका 
समय को थोडा खदका 
कदमो का रुख मोड़े  
कुछ मन का सुख खोजे। 
कही छाँव में अब लेटें 
कुछ खुला सा नभ देखें 
छोडके काली  सिहायी 
सवालों को दे रिहाई। 
लम्बी गहरी साँस भरूँ 
कुछ ऐसा अब मैं करूँ 
कही दे न तू दिखाई 
तेरी यादों की बिदाई। 
ना तुझपे और सितम 
बोझ करूँ कुछ कम 
न देखू मूड के और 
वो मुश्किलों का दौर। 
बातों के समंदर को 
आँखों में करलूं बंद 
नम्कीं तेरी ज़बाँ से 
मीठे भी बरसे थे चंद। 
अब और नहीं उठ्ते 
इन कंधो से तेरे ईनाम 
रौशनी के वादे बिखरे  
प्यार की हो गयी शाम। 
समेटें अपना वजूद 
समाके खुद में  खुद 
तेरे अक्श को कर जुदा 
आ तुझको करूँ विदा।
हाथों में थाम के चेहरा 
तेरे माथे को चूमकर 
कभी ना खोलू फिर मैं 
इन आँखों को मूंद कर। 

 

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