Wednesday, July 31, 2013

बारिश में भीगा है जिस्म मगर 
आँखों का पानी है, कहता कुछ और 
अभी बरसने है, बाकी कुछ सावन 
अभी यु सुखा, पड़ा मन का आंगन 

ठेहरी नहीं बूंदे, कोरी हथेली पर 
अभी ज़ुल्फ़ से पानी, छटना है बाकी 
अभी खुलके बरसा, नहीं कोई बादल 
अभी यादों से दिल का कटना है बाकी 

ज़मीं के कलेजे पे, पैरो से छब छब 
हाथों से बारिश का तन चूमलू 
उस ज़ालिम के जैसे, जो बरसे ये पानी 
बिसरे हुए लम्हों में,मैं फिर झुम्लू 

गुज़रती हें बूंदे, जब होकर के मुझसे 
लगता है जैसे, वो छुकर गया 
बहता है मुझमे, वोह बनकर लहू 
आदत मेरी वो, ये क्यों कर गया 

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