Sunday, July 7, 2013

बातों मे निकली बात

बातों मे निकली बात
और एक बात आ गयी
अठरा बरस पुरानी
एक याद आ गयी
अभी तो जवाँ हुआ न था
और ये किस्सा हो गया
एक अन्जाना  चेहरा
दिल का हिस्सा हो गया
यु अचानक एक दिन
वो कहीं से आ गयी
न कोइ था भाया  इतना
वो जितनी भा गयी
साँठ मिनट के साथ में
ये कमाल हो गया
उसने देखा भी नहीं
मेरा बुरा हाल हो गया
जाते हुए वो अदब से
ऐसी उलझन दे गयी
सँवर के बिखर गया मैं
मानो जान ही ले गयी
होंसलो ने कदम बढ़ाये नहीं
कभी ज़िकर कर पाए नहीं
दूरियाँ युही बढती रही
चाहत पर मिटटी चढती रही
रिश्तों के भँवर में उलझता गया
हर खाब मेरा झुलसता गया
दिन बने महीने
महीनो में बीतें साल
ज़िन्दगी ने हर मोड़ पर
बदली अपनी चाल
देखा नहीं इक अरसा उसे
न किया कभी इकरार
कह ही नहीं पाया कभी
उससे हुआ था प्यार
सदियों से लम्बी राहों पर
दोनों ही कहीं खो गए
अपने बनाये घरोंदो में
दोनों मशरूफ़ हो गए
मिली कहीं एक बार मुझे
वो अनजान मेरे प्यार से
खुशी में बदला ग़म मेरा
मिला था जो हार से
ये ख़ुशी इस बात की थी
वो बेहद खुशहाल थी
में भी आगे निकल चला था
ज़िन्दगी यहाँ भी निहाल थी
दोस्त बने हम-दोस्त रहे हम
फिर कुछ साल निकल गए
जाने क्यों देख दोबारा उसे
अब जस्बात मेरे मचल गए
इक तमन्ना फिर जागी
काश के ऐसा यार हो
वो मिले न मिले, ग़म नहीं
कमस्कम इकरार हो
उसे पानेकी चाहत
न थी न कभी होगी
ख्वाइश-की इक बार सही
उसे भी हमसे प्यार हो

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