Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Saturday, August 24, 2013
कई कोशिशे की, हसकर कहा अलविदा आँखों में फिर भी नमी आ ही गयी
टूट कर चाहा, दिल कम्बखत ने उसको प्यार में फिर भी कमी आ ही गयी
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