Monday, April 8, 2013

वो मिला, नज़रें मिली 
और गुज़र गया अजनबी सा 
हँसी भी आयी , आंसू भी 
क्या वो मेरा अपना था 

दर्द उठा, कसक हुई 
फिर वही, कश्म्कश हुई 
काश छूकर, देख लेती 
हकीकत, या कोई सपना था 

साँसों की ही, दूरी रही 
जाने क्या, मज़बूरी रही 
दुश्मन भी जो, बन न सका 
जाँ से अज़ीज़, वो वरना था 

चाहत मगर, दूर रह न सकी 
उसे छूकर, मुझसे लीपट ही गयी 
बेशक रहा वो, संग किसीके 
प्यार मुझ ही, से करना था 

मुझसे वो कहता, न कहता सही 
आहों ने उसकी, वो हरकत करी 
न दिया साथ उसने, तो शिकवा हो क्यों 
मुझे संग उसीके, तो चलना था 

हर दिन कुछ दूरी, बढती रही 
मोहब्बत सर मेरे, चढ़ती रही 
तोहफ़े हँसीं वो, कुछ पल थे रहे 
मदहोशी में जैसे, मचलना था
आघ्होश में उसके, पिघलना था 
बेपरवाह संग उसके, न संभलना था 
इन साँसों का उन साँसों में यु ढलना था
 

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