Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Monday, February 14, 2011
सहज भाव से बहला देना आऊं कभी तो सहला देना जिस भी जीवन में मिलो तुम प्यार मुझे ही पेहला देना
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