Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Wednesday, January 19, 2011
अमन के पंछी, कहरों में नहीं आते सागर के मोती, लहरों में नहीं आते जो आते है खुशनूमा, आज़ाद खयालो में वो हसीं खाब , पहरों में नहीं आते
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