Saturday, January 29, 2011

गुब्बारों सा फोड़ दिया
ख्वाबो का रुख मोड़ दिया
सिने से लगा का कहा था
हाथ कभी ना छोड़ेंगे
जाने ऐसा क्या हुआ
पल में साथ छोड़ दिया

सनम से ज़िरह की फेरिस्त नहीं बनती 
इश्क लौटने की कोई किश्त नहीं बनती
तुम ये सोचो, गलती काबिल-ए- माफ़ नहीं
हम ये सोचे, ऐसी सज़ा हरगीज़ नहीं बनती

ख्वाब और हकीकत में जो दरमियान रहे 
तुमसे इश्क में जाने कितने इम्तेहान रहे
अब तक तो रहे इस दिल के आस पास ही कहीं
गए जो हमसे दूर, अब जाने कहाँ रहे

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