Saturday, January 8, 2011

एक आवाज़ पे हमारी, लौट आएंगे वो..
समेट लेंगी फिरसे, वो बाहें हमें..
भुलाके वो शिकवे और सारे गिले 
शर्त है जो फिर ना, वो चाहे हमें ..

मगर बात सारी, थम जाती है यहीं
की आवाज़ हमारी उनतक, अब जाती ही नहीं..

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