Tuesday, March 8, 2011

इक सुबह ऐसी हो,
तूझे जागते मैं देखू,
सूरज की नर्म किरणों में  तेरी आंखें खुल रही हो,
तेरे चेहरे की मासूमियत यु धीरे धीर उभर के मुस्कुराये
तेरी अंगडाइयों  की सिलवटो को कुछ बेचैन पाऊं  
तेरी शांत धडकनों को मेरे खयालो में खोया देखू
सुबह के पहले पहर तुझे में अपनी यादों में शामिल देखू,
कितना खूबसूरत वो पल हो, जब तेरे अक्ष मैं सिर्फ मेरी झलक हो,
और जिस मौड़ बेचैनी चरम पे हो,
मैं आके तुझे गले लगालू, और तेरे आघोष में खुदको खो दू...

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