Monday, June 27, 2011

बात कोई भी याद नहीं,
शायद सब कुछ भूल गए,
हमने भी करवट लेली
जब उसने आँखें मूंद लयी

माथे पर शिकन कैसी
ग़म तो कोई दीखता नहीं
हर सुबह तुम्हारी हँसती रहे
शिकवो की वो रात गयी    

जस्बातों का मेला है
थक कर फिर सो जायेगा
इतना क्यों घबराते हो
रिश्तो का ये मेल नहीं

आज भी है और कल भी होगा
फासला जो तेय न किया
सेतु कोई यहाँ भी बने
ऐसा तो मुमकीन ही नहीं  

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