Friday, January 21, 2011

सुबह  तक जो "है " में था , वो "था " में हों गया
फिर किसी का "अपना", कही खो गया
ये कैसी प्रथा , यह कैसा नियम
कुछ पलों के फासलों  में फैसला हों गया


वो जिए, हसें, संग रहे, और अब चल दिए
कहाँ , क्यू, किसलिए, कोई कहता ही नहीं
बस इतना इल्म है सबको, जो मुझे भी हुआ
की हमेशा के लिए कोई यहाँ रहता ही नहीं


एक शारीर, जिसे हम इक रिश्ते से पुकारते रहे
आज उसी को कुछ लोग अग्नि को सौंप आये
लेकिन उसमे जो इनसान बस्ता था, वो कहा गया
कैसे क्या करें, की वो फिर लौट आये



उसकी आवाज़, उसकी यादें, उसकी बातें
कभी दूर ना जाएँगी
कई मोड़ पर, कई राह में, उसकी हिदायतें
अक्सर याद आएँगी


यु तो कई अपनों, कई परायों को ऐसे जाते देखा है
फिर भी आज जाने क्यों, ये ख़याल आ गया
कुछ और लोग आने वाले समय में जायेंगे
कुछ और अपने, साथ अपना छोड़ जायेंगे
हर बार, एक दर्द, एक कमी, एक खलल रह जाता है
जाने कैसे इस दर्द को, ह़र सख्श सह जाता है
ऐसे एक दिन में भी तो जाउंगी
कैसा होगा एहसास, उन सबको छोड़ के जाने का, 
जिन्हें खुद से भी ज्यादा प्यार किया हों 
मुझे पता है ये सब सोचना व्यर्थ है, 
क्यूंकि मौत बताकर नहीं आती, 
लेकिन फिर भी ये ख़याल आ रहा है,
की क्या में मौत से हार जाउंगी, डर जाउंगी
या फिर हस्ते हुए, औरो की तरह, 
ज़मीन के उस और, जाने कहाँ,
उस श्रुजन करता में खो पाऊँगी ..
क्या में भी सब के मन  में याद बनकर  रह जाउंगी
या कहीं, किसी के दिल में, हर पल जीती जाउंगी
पता नहीं, कैसे होगा मेरे इस जीवन का अंत,
पता नहीं कब ये माटी फिर माटी में भल जाएगी
पता नहीं वो सुबह किस रंग में आएगी

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