Sunday, January 23, 2011

शब्दों की कुछ कमी सी है
दिल में आज नमी सी है
लिखना बहोत चाहती हु मगर
साँसे उलझ में रमी सी है 
             शब्दों की कुछ कमी सी है


ज़हन में बातें झूझ रही
मुझसे क्या क्या पूछ रही
पन्नो पर कैसे में लाऊं 
कलम मेरी कुछ थमी सी है
             शब्दों की कुछ कमी सी है


चुप कहाँ  रहती हूँ  में
कितना कुछ कहती हूँ  में
आज मगर आँखों के आगे
माटी की परत, जमी सी है
              शब्दों की कुछ कमी सी है

कहते कहते कितना कहा

बात मगर वो रह ही गयी 
जिससे मन व्याकुल सा है
जिससे दिल में नमी सी है
               पर, शब्दों की कुछ कमी सी है 

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