Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Wednesday, November 24, 2010
औरो ने कहा, मैंने माना ही नहीं अपनी आँखों से देखा, तो यकीं हों गया वो जिसे चाहा था, दिलो जाँ से मैंने ख़ुशी से वो आज किसी और का हों गया
ओह!
ReplyDelete... प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDelete