Farz-E-Muhaal->> An impossible hypothesis
जाने किस खाख से जड़ दिया नाचीज़ को,
दर्द भी दामन में फूलों से लगतें है!
हमें रुलाके वोह भी गम्घीन हों जाए,
इतना असर अपनी आहों में रखतें है!
Friday, October 19, 2012
कभी, कही, कोई अगर मुलाक़ात होगी अब आंसुओं से ही, शुरुआत होगी
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