पैरो के नीचे ठंडी ज़मीं
सर पर चढ़ा बुखार प्यार का
इससे और प्यारी सुबह क्या होगी
आँख खुले और दीदार यार का
प्रत्यक्ष नहीं
ख़याल सही
सुबह मगर
हँसीं तो हुई
भरम टुटा
खयालो का
पैरो में आई
जब ठंडी ज़मीं
सर पर चढ़ा बुखार प्यार का
इससे और प्यारी सुबह क्या होगी
आँख खुले और दीदार यार का
प्रत्यक्ष नहीं
ख़याल सही
सुबह मगर
हँसीं तो हुई
भरम टुटा
खयालो का
पैरो में आई
जब ठंडी ज़मीं
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