उल्फत के दो पहलु,
इक हम ,
इक तुम .
बाकी जो दरमियाँ में रहा ;
वो मौसम का तकाज़ा था .
कभी आँखों से पिया था;
कभी साँसों मैं जिया था ,
तीखी थी मुलाकातें कई पर;
बारीशें मिसरी ही रहीं .
गुब्बारों में छुपकर सोचा ;
ये दुनिया हमारी हुई ,
कांटो में उलझकर अरमां;
मिटटी होकर बिखर गए .
हाथो की नज़दीकियों में ;
मौसम नरमाई दे गया ,
दोनों उसी रास्ते पर है ,
दिशायें विरोधी हो गयी ..
बयानों के पर्चे ख़त्म ना होंगे
हा मगर,
सुनने को अब हम तुम नहीं ..
इक हम ,
इक तुम .
बाकी जो दरमियाँ में रहा ;
वो मौसम का तकाज़ा था .
कभी आँखों से पिया था;
कभी साँसों मैं जिया था ,
तीखी थी मुलाकातें कई पर;
बारीशें मिसरी ही रहीं .
गुब्बारों में छुपकर सोचा ;
ये दुनिया हमारी हुई ,
कांटो में उलझकर अरमां;
मिटटी होकर बिखर गए .
हाथो की नज़दीकियों में ;
मौसम नरमाई दे गया ,
दोनों उसी रास्ते पर है ,
दिशायें विरोधी हो गयी ..
बयानों के पर्चे ख़त्म ना होंगे
हा मगर,
सुनने को अब हम तुम नहीं ..
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