Saturday, November 20, 2010

पा लिया एक ख्वाब तो, उम्मीद बढ़ गयी
    जाने ये उम्मीद हमें अब, ले कहाँ जाए
ना- इंसाफी है ये कैसी, कैसा ये सितम
    गुनाह किसी और का, सज़ा कोई पाए
ना आँखों से, ना बातों से, ना लिख कर केह सके
    तो कैसे इस दिल का हम, हाल सुनाये
कसमो पर कभी यकीं, हमें आया ही नहीं
    क्यों फिर कसम खाके, तुझे यकीं दिलाएं
धुल ज़रा ज़रा कभी, हटाते रहना
     यादों के किसी ढेर में , कहीं हम ना खो जाए  

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|

    ReplyDelete
  2. bahut hi achchha likha hai. satat blog lekhan ke liye shubkamnayen.

    ReplyDelete
  3. कसमो पर कभी यकीं, हमें आया ही नहीं
    क्यों फिर कसम खाके, तुझे यकीं दिलाएं

    धुल ज़रा ज़रा कभी, हटाते रहना
    यादों के किसी ढेर में , कहीं हम ना खो जाए

    लाजवाब

    ReplyDelete
  4. शुरुआत से ही इतने सुन्दर भाव, दिल को छु गए .... बहुत खूब
    यहाँ पर भी पधारे और कमेन्ट दे http://unbeatableajay.blogspot.com/

    ReplyDelete
  5. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete